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लोक लेखाः नवगठित लोक लेखा समिति

Published - September 12, 2024 10:35 am IST

संसदीय निगरानी के एक साधन के तौर पर पीएसी को अपनी भूमिका पर जोर देना चाहिए 

बीते एक दशक से सामान्य बहुमत से ज़्यादा सीटों के साथ संसद पर काबिज केंद्र सरकार ने संसदीय जिम्मेदारी की सार्थकता से लगातार कन्नी काटती रही। हालांकि, अब गठबंधन के साथ बीजेपी केंद्र की सत्ता में है और काफी हद तक उसकी निर्भरता अपने सहयोगी दलों के ऊपर है। साथ ही, विपक्ष भी पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत है। बदले हुए हालात ने कार्यपालिका के काम-काज पर संसदीय निगहबानी का एक अवसर तैयार किया है। ताजा-ताजा गठित हुई लोक लेखा समिति (पीएसी) की सक्रिय शुरुआत इसकी बानगी है। इसने 2 सितंबर को अपने कार्यकाल के दौरान विचार-विमर्श के लिए चुने गए 161 विषयों की सूची जारी की, जिसमें से ज्यादातर विषय सीएजी की रिपोर्ट पर आधारित हैं। पैनल ने पांच विषयों को स्वत: संज्ञान लेते हुए चुना है- बैंकिंग और बीमा क्षेत्रों में सुधार, केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्यवन की समीक्षा, ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव के लिए चल रहे नीतिगत उपाय, संसद के अधिनियमों द्वारा स्थापित नियामक निकायों के प्रदर्शन की समीक्षा और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और अन्य सार्वजनिक उपयोगिताओं पर शुल्क, टैरिफ, उपयोगकर्ता शुल्क की वसूली और विनियमन। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल की अध्यक्षता वाली पीएसी ने उस नियम का इस्तेमाल किया है जिसमें यह साफ तौर पर बताया गया है कि इसके काम-काज का दायरा ‘खर्च की औपचारिकता से परे, इसकी बुद्धिमत्ता, निष्ठा और मितव्ययिता’ तक जा सकता है। इस नियम का इस्तेमाल कभी-कभार ही हुआ है और हुआ भी है तो अक्सर राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए। हालांकि, पीएसी ने जो विषय चुने हैं उनके भी राजनीतिक निहितार्थ हैं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि इन विषयों से जनहित का बड़ा मुद्दा जुड़ा हुआ है।

इस संवैधानिक समिति की मूल कल्पना यही है कि देश के वित्त को भारतीय संसद नियंत्रित करती है। कोई भी कर कानून पारित कर��े ह�� लगाया जा सकता है। सरकार को अपने सभी खर्चों के लिए विनियोग विधेयक पेश करके संसद से पहले ही मंजूरी लेनी होती है। सीएजी एक संवैधानिक निकाय है, जो सरकार के सभी विभागों के वित्तीय कामकाज की जांच और उसकी ऑडिट करता है। इसकी सभी रिपोर्ट पीएसी को भेजी जाती है, जो सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण संसदीय पैनलों में से एक है। अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर डालने वाले लोगों और योजनाओं को चुनने के सरकारी तौर-तरीकों पर हाल के वर्षों में ‘क्रोनी कैपटलिज्म’ के कई गंभीर आरोप लगे हैं। सरकार ने सेबी की अध्यक्ष माधबी पी. बुच और सात भारतीय हवाई अड्डों को नियंत्रित करने वाले अदाणी समूह के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की जांच करने से इनकार कर दिया। सरकारी बैंकों और नियामक संस्थाओं को कई सवालों के जवाब देने हैं। भाजपा पहले ही इन मुद्दों पर किसी भी तरह की पीएसी जांच का विरोध कर चुकी है। कुल 22-सदस्यीय पीएसी में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के 13 और कांग्रेस के चार समेत विपक्ष के कुल नौ सांसद शामिल हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन के बहुमत की वजह से इस समिति की मुखर मुद्रा कमजोर पड़ सकती है। पीएसी और विभागों से जुड़ी स्थायी समितियों को खुद को संसदीय प्राधिकरण के तौर देखना चाहिए और जनता के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही को लागू करने के लिए अपनी भूमिका पर जोर देना चाहिए। फिलहाल तो विभाग संबंधित कई स्थायी समितियों का बनना भी बाकी है।

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