दृष्टि की स्पष्टताः प्रेसबायोपिया के लिए आई ड्रॉप्स और उसके ‘दावे’

एक उपयोगी दवा अपनी प्र��ावकारिता के बारे में लंबे-चौड़े दावों से बेकार हो जाती है

Published - September 17, 2024 10:21 am IST

चिकित्सा में सतही ढंग से बढ़ा-चढ़ाकर कर किये जाने वाले दावे (जो विज्ञान और तथ्यों द्वारा पुष्ट नहीं होते) स्वास्थ्य क्षेत्र में लंबे समय से एक परेशानी बने हुए हैं। समय-समय पर मीडिया में हैरतअंगेज इलाज के वादों ने, वास्तव में, इन दावों पर लगाम लगाने की खातिर एक अलग कानून - ड्रग्स एंड मैजिक रेमिडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम – बनाने के लिए ��्रेरित किया। पिछले हफ्ते, प्रेसबायोपिया (बढ़ती उम्र के चलते आंखों की निकट फोकसिंग क्षमता में धीरे-धीरे कमी) के लिए सुझाये गये आई ड्रॉप की क्षमता से जुड़े दावों को लेकर उपजे विवाद के चलते, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने इस उत्पाद को बनाने और बाजार में उतारने के लिए एक दवा कंपनी को दी गई अनुमति को निलंबित कर दिया। सीडीएससीओ ने कहा कि कंपनी ने ऐसे दावे किये हैं जिसके लिए उसे अधिकृत नहीं किया गया है (यह कि आई ड्रॉप के इस्तेमाल से प्रेसबायोपिया के लिए पढ़ने वाले चश्मे की जरूरत नहीं रह जायेगी)। “जनहित की दृष्टि से, और इन दावों से जनता के गुमराह होने की संभावना के चलते” अनुमति निलंबित की गयी। एनटॉड फार्मास्यूटिकल्स कंपनी को इस दवा के लिए मिली मंजूरी एक वैध नियंत्रित क्लीनिकल ट्रायल पर आधारित थी, जिसने 234 मरीजों में प्रभावकारिता और सुरक्षा प्रदर्शित की थी। इसने नये उत्पाद से जुड़ी मीडिया रिपोर्टों पर इन ‘दावों’ का दोष डाल दिया, “जो वायरल हो गये और जनता की कल्पनाशीलता ने उन्हें एक अलग ऊंचाई तक पहुंचा दिया जिसके लिए एनटॉड फार्मास्यूटिकल्स जिम्मेदार नहीं है”। अपनी इन आपत्तियों के बावजूद, कंपनी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को टैग करते हुए एक्स पर एक संदेश पोस्ट किया था (जो अब हटा लिया गया है): “पढ़ने वाले चश्मे की जरूरत खत्म करने के लिए प्रेजवू डीसीजीआई से मंजूरी प्राप्त पहला प्रोपराइटरी प्रेसक्रिप्शन आई ड्रॉप है।”

इस आई ड्रॉप में मुख्य सामग्री पाइलोकार्पीन है जो पुतलियों को संकुचित करता है जिससे पिनहोल प्रभाव पैदा होता है। यह प्रेसबायोपिया वाले किसी व्यक्ति को बेहतर ढंग से देखने में सक्षम बनायेगा। पाइलोकार्पीन का इस्तेमाल नेत्रविज्ञान या यहां तक कि प्रेसबायोपिया में नया नहीं है। इसका इस्तेमाल ग्लूकोमा के उपचार में किया गया है, हालांकि साइड इफेक्ट के चलते इसका इस्तेमाल कम हो गया, और इसकी जगह बेहतर दवाएं ले चुकी हैं। यू.एस. एफडीए ने 2021 और 2023 में पाइलोकार्पीन-आधारित आई ड्रॉप को प्रेसबायोपिया के लिए इस्तेमाल की मंजूरी दी। उस समय इन मंजूरियों की घोषणा प्रकाशित की गयी थी। उन विज्ञप्तियों में आई ड्रॉप के फायदों के साथ साइड इफेक्ट का जिक्र था। यह प्रेसबायोपिया से पीड़ित लोगों को चश्मे, कांटैक्ट लेंस और सर्जरी के अलावा एक अन्य विकल्प मुहैया कराने का नपा-तुला दावा था। सीडीएससीओ का इस मामले में हस्तक्षेप, स्पष्ट रूप से ड्रग्स एंड मैजिक रेमिडीज अधिनियम को मजबूत करने का एक प्रयास है। यह आज के भारत में एक वैध हस्तक्षेप है, जहां रामबाण इलाजों के बार-बार विज्ञापन उस उद्योग की मौजूदगी का संकेत करते हैं जो भोलेभाले मरीजों को ठगने पर फलता-फूलता है। यह सरकार का कर्तव्य है कि वह केवल वैज्ञानिक डेटा को महत्व दे और दवाओं के बारे में अपुष्ट दावों पर लगाम लगाए, चाहे इन दवाओं को कोई भी बनाता हो।

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